अनुभूति में अमित
खरे की
रचनाएँ- छंदमुक्त में-
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गांधारी
प्यार
विषकन्या
संबन्ध
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एकतरफा
चाँद मुझे चाहता है
बस मुझे ही चाहता है
प्यार करता है मुझसे बहुत
ऐसे ही तो नहीं आता वो रोज
मेरी छत पर
जब ढल जाता है दिन
और लगे होते हैं सब
काम निपटाने में
वो देखता रहता है, एकटक मुझे
खिड़कियों से, रोशनदानों से
झाँकता है, दरवाजों से, निर्लज्ज
कहीं से देखूँ मैं
उसे अपनी ओर ही देखता पाती हूँ।
शर्मा जाती हूँ, पर वो नहीं मानता
अभी कल की ही बात लो
शाम से घिरे थे बादल
पर मौका मिलते ही बादलों से झाँकने लगा वो
इतना भी क्या प्यार ?
कि मैं अगर उदास हो जाऊँ
तो उदास दिखने लगे वो भी
और अगर खुश रहूँ कभी
तो नाचने लगे आकाश में वो भी।
इतना भी क्या प्यार ?
फिर सोचती हूँ, कह दूँ बेचारे से
कि मुझे भी प्यार है तुमसे
पर
कभी मिलता भी तो नहीं कमबख़्त।
हाँ! एक बात तो तय है
चाहता है बस मुझे ही वो।
बहुत।
१ जुलाई २०२२ |