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गुनगुनाएँ
हम |
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फिर चलो इस जिंदगी को
गुनगुनाएँ हम
बैठ कर बातें करें औ
मुस्कुराएँ हम
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लान कुर्सी पर मधुर संगीत को
सुन लें
चाय की चुस्की भरे हर स्वाद को गुन लें
प्रीत के निर्झर पलों को
गुदगुदाएँ हम
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अनकही बातें कहें जो शेष हैं मन में
गंध फूलों की समेटे आज दामन में.
नेह की, नम दूब से
शबनम चुराएँ हम
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इस समय की धार में कुछ ख्वाब हैं छूटे
उम्र भी छलने लगी, पर साज ना टूटे
साँझ के शीतल पलों को
जगमगाएँ हम
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जिंदगी की धूप में बेकल हुई कलियाँ
साथ तुम चलते रहे, यों कट गयीं गलियाँ
एक मुट्ठी चाँदनी में
फिर नहाएँ हम
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- शशि पुरवार |
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