|
गोधूलि निकट |
|
ठिठके सपने गोधूलि निकट
रवि पहुँच गया अस्ताचल तक
पग दो राहे
क्यों रहे भटक
अधबना नीड आई संध्या
आँसू डूबी सुख की आशा
लम्बी छाया
गंतव्य पृथक
संशय घिरता चुप अभिलाषा
जीवन, आधा पल परिभाषा
रस्ते सारे
ज्यों गये चटक
क्यों बाँह थाम रोंके यात्रा
फिर भी घटती मैत्री मात्रा
बैराग प्रथा
अब रही, खटक
- विप्लव जी |
|
|