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कहाँ-कहाँ पर जाकर खोजें |
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कहाँ-कहाँ पर जाकर खोजें
अपने को ही हम
जीवन के पृष्ठों का कितना
बदल गया अनुक्रम
1
घटना-परिघटना-दुर्घटना से
थोड़ा छँटकर
साँसों को बंधक रख जीवन
मिला सदा बँटकर
शायद हमने ही पाले हैं
अपने-अपने भ्रम
1
कुछ मजबूरी, कुछ आडम्बर
ढोते हुए चले
अपने विश्वासों ने मिलकर
हम हर बार छले
मृगजल के बहलावे देते
आभासी उपक्रम
1
आसमान को रहे ताकते
गिनकर तारों को
और प्रार्थना में माँगा
निर्मूल सहारों को
लक्ष्य अधूरे रहे सभी के
व्यर्थ गया हर श्रम
1
- जगदीश पंकज |
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इस माह
गीतों में-
अंजुमन मे-
छंदमुक्त में-
दिशांतर में-
छोटी कविताओं में-
पुनर्पाठ में-
विगत माह
गीतों में-
अंजुमन मे-
छंदमुक्त में-
दिशांतर में-
क्षणिकाओं में-
पुनर्पाठ में-
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