गीता हिजरानी अगीरा की
छोटी कविताएँ |
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पाँच
कविताएँ
१.
गुज़रे हुए लम्हों की कड़वाहट में,
कल के सूरज का अपमान ना कर।
आशा का दीप प्रज्ज्वलित कर,
उम्मीद की किरण स्वयं तुम्हें
राह दिखाएगी।
२.
सच तो सच है जनाब
इसे छुपाओगे कैसे
आज नहीं तो कल ज़माने को
नक़ाब उठा कर
अपना दीदार करा ही देगा।
३.
इतने भी मुखौटे न बदलिये
जनाब
कि सच ख़ुद के लिये भी दफ़्न हो जाय।
क्योंकि
ऐसा न हो कि आज हम जो
मुखौटे बदल रहे है,
कल ये हमसे हमारी ही
असली पहचान छीन लें।
४.
हॉं, गिले शिकवे तो ख़ूब किए
थे,
जनाब हमने भी।
पर,उसकी रहमतों ने हाथ थामे रखा,
बालक जानकर।
शुक्रगुज़ार हैं हम उसके,
सदा के लिए।
विश्वास की ये कड़ी बनी रहे,
सदा के लिए।
५.
जीवन के कुछ उतारों चढ़ावों
को
पार कर आए,
खुदा ने नवाज़ा सुखों से
तो समझे,
कर्म ही अपने हाथ था
कल का पता तो उसके पास था।
जो रुक जाते कहीं घबराकर,
आज भी छूट जाता दामन बचाकर।
१ सितंबर २०२२ |