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इस नदी |
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इस नदी के
घाट पर हम ठाठ से रम जाएँगे
इस नदी का
जल हमें बेहद लुभाता है
हो न हो पिछले जनम का एक नाता है
हम नदी को मान देकर गीत
इसके गाएँगे
इस नदी के
घाट पर हम ठाठ से रम जाएँगे
इस नदी की
धार हमको खूब भाती है
साथ पाकर यह हमारा झूम जाती है
धार की हर बूँद पावन है
इसे सहलाएँगे
इस नदी के
घाट पर हम ठाठ से रम जाएँगे
आँख में भर
हम कछारों को निहारेंगे
देह नदिया की जहाँ टूटी सँवारेंगे
रूप पहले-सा सजीला हम
इसे लौटाएँगे
- मनोज जैन मधुर |
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इस माह
गीतों में-
अंजुमन मे-
छंदमुक्त में-
दिशांतर में-
दोहों में-
विगत माह
गीतों में-
अंजुमन मे-
छंदमुक्त में-
दिशांतर में-
दोहों में-
विज्ञानकु में-
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