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कागज़ की नाव |
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बाढ़ अभावों की आयी है
डूबी गली-गली
दम साधे हम देख रहे
कागज़ की नाव चली
माँझी के हाथों में है
पतवार आँकड़ों की
है मस्तूल उधर ही
इंगिति जिधर धाकड़ों की
लंगर जैसे जमे हुए हैं
नामी बाहुबली
आँखों में उमड़े-घुमड़े हैं
चिंता के बादल
कोरों पर सागर लहराया
भीगा है आँचल
अपनेपन का दंश झेलती
क़िस्मत करमजली
असमंजस में पड़े हुए हम
जीवित शव जैसे
मत्स्य-न्याय के चलते जीवन
चले भला कैसे?
नौकायन करने वालों की
है अदला-बदली-
राजेन्द्र वर्मा |
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इस सप्ताह
गीतों में-
अंजुमन में-
दिशांतर
में-
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पुनर्पाठ
में-
पिछले
सप्ताह
२९ जून २०१५ के
अंक में
गीतों में-
अंजुमन में-
दिशांतर
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पद में-
पुनर्पाठ
में-
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