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अभिव्यक्ति-तुक-कोश

२. २. २०१५-

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फिर बिछलती साँझ ने

 

फिर बिछलती साँझ ने
भरमा दिया
लेकर तुम्हारा नाम

बहककर है आ
गया मेरे दुआरे
अन्य बागों से
मधुर
मलयी पवन
बिछ रहे पथ में
अतुल विश्वास लेकर
किस अदेखे ताल से ये
भीगकर
आये नयन

हर सुलगते शब्द ने
आकर किया है
फिर मुझे बदनाम

दूर शाखों में बसी
वह गंध भरमाती रही है
बंद पलकों में तुम्हारी
याद तरसाती
रही है
इक सुखद अहसास है
सालता मुझको अजाना
अधजनी अनुभूतियों में
आस ललसाती
रही है

अनियंत्रित
पग कसकते
चाहते विश्राम

- सुरेश पांडा

 

इस सप्ताह

गीतों में-

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सुरेश पांडा

अंजुमन में-

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मदन मोहन अरविंद

छंदमुक्त में-

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सुदर्शन वशिष्ठ

कुंडलिया में-

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त्रिलोक सिंह ठकुरेला

पुनर्पाठ में-

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डॉ. शैलेन्द्र कुमार सक्सेना

पिछले सप्ताह
२६ जनवरी २०१५ के अंक में

गीतों में-

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धीरज श्रीवास्तव

अंजुमन में-

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पूनम शुक्ला

छंदमुक्त में-

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शैली खत्री

दोहों में-

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शशि पाधा

पुनर्पाठ में-

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डॉ. संजीता वर्मा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग :
कल्पना रामानी