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  १६. ५. २०११

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कुटी चली परदेश कमाने1

 

कुटी चली परदेश कमाने
घर के बैल बिकाने
चमक दमक में भूल गई है
अपने ताने-बाने
1
राड-बल्‍ब के आगे फीके
दीपक के उजियारे
काट रहे हैं फुटपाथों पर
अपने दिन बेचारे
कोलतार सड़कों पर चिडि़या
ढूँढ़ रही है दानें
1
एक-एक रोटी के बदले
सौ-सौ धक्‍के खाये
किन्‍तु सुबह के भूले पंछी
लौट नहीं घर आये
काली तुलसी कैक्‍टस दल के
बैठी है पैताने
1
गोदामों के लिए बहाया
अपना खून पसीना
तन पर चमड़ी बची न बाकी
ऐसा भी क्‍या जीना
छाँव बरगदी राजनगर में
आई गाँव बसाने
1
- शीलेन्द्र सिंह चौहान

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

लंबी कविता में-

पुनर्पाठ में-

अनुभूति का २० जून का अंक टेसू या पलाश विशेषांक होगा। इस अंक के लिये हर विधा में पद्य रचनाओं का स्वागत है। रचनाएँ हमें १० जून से पहले मिल जानी चाहिये। पता इसी पृष्ठ पर ऊपर है।

पिछले सप्ताह
मई २०११ के अंक में

गीतों में-
बाबूराम शुक्ल

अंजुमन में-
वीनस केसरी

छंदमुक्त में-
अशोक कुमार पाण्डेय

मुक्तक में-
रामदरश मिश्र

पुनर्पाठ में-
सुकीर्ति गुप्ता

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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