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  २१. २. २०११

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सुरमई सपने

 

सुरमई सपने अबोले
उड़ रहे हैं पाँख खोले

साँझ कब उतरी गगन से
घाटियों मे कब समाई
मोड़ तक देखो तनिक तुम
पर्वतों की बेहयाई

साथ अम्बर का मिला है
बादलों के पार हो लें

चाँद की बातें सुनो या
चाँदनी बनकर बहो तुम
है कुमुदनी साथ मे तो
व्यर्थ मत रूठे रहो तुम

सोनचंपा सुन रही है
क्यों न अपनी बात बोलें

गुलमोहर सी ज़िन्दगी को
नीम जैसा क्यों बनायें
धूप के सन्मुख हँसें हम
आँधियों को सर चढ़ाएँ

छाँह मे अमराइयों के
एक दूजे को टटोलें

- मधु प्रसाद

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
   
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