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अभिव्यक्ति  

६. १२. २०१०

अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्रामगौरवग्रंथदोहेपुराने अंकसंकलनहाइकु
अभिव्यक्तिहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतरनवगीत की पाठशाला

चेहरा तुम्हारा

 

साँझ चूल्हे के धुएँ में
लग रहा चेहरा तुम्हारा
ज्यों घिरा
हो बादलों में
एक टुकड़ा चाँद प्यारा!

रोटियों के
शिल्प में है हीर-राँझा की कहानी
शाम हो या दोपहर हो
हँसी, पीढा
और पानी

याद रहता है तुम्हें सब
कब कहाँ, किसने पुकारा!

एक भौंरा
फूल पर बैठा हुआ तुमको निहारे
और नन्हा दुधमुँहा
उलझी तुम्हारी
लट सँवारे

दिन गुलाबी
और रंगोली
बनाने का इशारा!

मस्जिदों में
हो अजानें, मंदिरों में आरती हो
एक घी का दिया चौरे पर
तुम्हीं तो
बारती हो

जाग उठता
देख तुमको
झील का सोया किनारा!

-- जयकृष्ण राय तुषार

इस सप्ताह

गीतों में-

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जयकृष्ण राय तुषार

अंजुमन में-

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ओमप्रकाश यती

छंदमुक्त में-

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पुष्पा तिवारी

क्षणिकाओं में-

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हरकीरत हीर

पुनर्पाठ में-

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सरिता शर्मा

पिछले सप्ताह
२९ नवंबर २०१० के अंक में

गीतों में-

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सुधांशु उपाध्याय

अंजुमन में-

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डॉ. भगवान स्वरूप चैतन्य

छंदमुक्त में-

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पंकज त्रिवेदी

लंबी कविता में-

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गोपाल कृष्ण 'आकुल'

पुनर्पाठ में-

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सीमा शफ़क

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
     
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