हरकीरत हीर
जन्म:३१ अगस्त , को (असम) में।
शिक्षा : एम.ए (हिन्दी), डी.सी.एच
कार्यक्षेत्र : हिन्दी ,पंजाबी तथा असमियाँ में काब्य ,आलेख,
कहानियों का लेखन व अनुवाद।
प्रकाशित कृतियाँ :
दो कविता संग्रह 'इक - दर्द ' तथा दर्द की महक'। इसके अतिरिक्त
विभिन्न प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में निरंतर
रचनाएँ प्रकाशित तथा आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से काव्यपाठ।
इंटरनेट पर अपना
हरकीरत 'हीर' नामक स्वतंत्र ब्लॉग
अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत।
संप्रति- स्वतंत्र लेखन।
ईमेल-
mail4u2harbi@yahoo.com
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कुछ क्षणिकाएँ
१
तेरा जन्म
पत्तों के
लबों की ये थरथराहट
शाखों की ये मुस्कराहट
आँखों में अज़ब -सी चमक लिये
अजनबी -सी ये सबा
आज ये
कैसा पता दे रही है?
२
तेरी याद
जब भी
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुँडेर पर
बैठता है
मेरे मकान की नीव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाए!!
३
ख़त
कुछ अक्षर
जो कभी तुम्हारे सीने पर
सर रख कर खूब खिलखिलाए थे
आज फिर भेजे हैं ख़त में
हो सके तो इन्हें
रोने देना
मोहब्बत अब
जिंदा रहना चाहती है!!
४
सिसकता चिराग़
आज ये फिर
तेरी कमी -सी
जाने कैसी खली है
के मेरी कब्र के
टूटे आले पर रखा चिराग़
सिसक उठा है
मेरी उम्र की मीआद
अब घटने लगी है !!
५
जिक्र
उनका ज़िक्र
कुछ यूँ करती है सबा
के इस खुश्क रात के सीने पर
उग आता है
मीठा - मीठा-सा दर्द
इश्क़ का .!!
६
रंग
शायद मैं .
कागज़ का वह टुकड़ा थीं,
जहाँ मोहब्बत का कोई हर्फ़
रंग नहीं लाया
ऐसे में तुम ही कहो -
मैं तुम्हारे लिए
मोहब्बत का हर्फ़
कैसे लिखती!!
६ दिसंबर २०१० |