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अभिव्यक्ति  

२९. ११. २०१०

अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्रामगौरवग्रंथदोहेपुराने अंकसंकलनहाइकु
अभिव्यक्तिहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतरनवगीत की पाठशाला

आधी रात

 

झरे चमेली आधी रात
खुली हथेली आधी रात

खिड़की ने पुरवाई ले ली
गंधों ने अमराई ले ली
सौ के सौवें हिस्से में ही
फूलों ने अँगड़ाई ले ली
जंग लगे दरवाजे बोले
खुली हवेली आधी रात

धीरे धीरे बर्फ गली
ठहरी हुई नदी चली
सौ के सौवें हिस्से में ही
गहरी काली रात ढली
एक किरन आँगन में उतरी
खुलकर खेली आधी रात

वंशी का स्वर तेज हुआ
मौसम भी रंगरेज हुआ
सौ के सौंवें हिस्से में ही
सबकुछ मानीखेज हुआ
गरम दूध में डूब रही है
गुड़ की भेली आधी रात

जंगल में ही राह दिखी
घनी धूप में छाँह दिखी
सौ के सौंवें हिस्से में ही
एक चमकती बाँह दिखी
हम तो एक पहेली थे ही
एक पहेली आधी रात

-- सुधांशु उपाध्याय

इस सप्ताह

गीतों में-

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सुधांशु उपाध्याय

अंजुमन में-

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डॉ. भगवान स्वरूप चैतन्य

छंदमुक्त में-

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पंकज त्रिवेदी

लंबी कविता में-

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गोपाल कृष्ण 'आकुल'

पुनर्पाठ में-

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सीमा शफ़क

पिछले सप्ताह
२२ नवंबर २०१० के अंक में

अंजुमन में-
मधु प्रधान

छंदमुक्त में-
विद्या भूषण

क्षणिकाओं में-
डॉ. उमेश महादोषी

भावभीनी श्रद्धांजलि-
महावीर शर्मा

गीतों में-
कार्यशाला- ११ से चुने हुए गीत

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
     
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