एक नशा कर बैठे हैं हम
और न कुछ कर पाएँगे।
जिन्हें रक्त से सींच रहे हैं
उन्हें छोड़ क्या गाएँगे।प्यास नहीं आकुल
अधरों पर
हमने बंशी धारी है।
बने-ठने इस मेले में तो
बाकी सभी उधरी है।
तुम तो मरघट पर रुक लोगे,
हम अनंत तक जाएँगे।
हमको बाँध सका कोई तो
बाँधा केवल छंदों ने।
नकली हस्ताक्षर ही माना
कुछ आँखों के अंधों ने।
विषधर तो विष ही उगलेंगे
अमृत हम छलकाएँगे।
हम ऐसे सौदागर हैं जो
छोड़ तराजू चलते हैं।
पर्वत से हैं टकरा जाते
पर आँसू से गलते हैं।
यों गल-गल कर मेघों से हम
गीतों में ढल जाएँगे।
--निर्मला जोशी |