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५. ४. २०१०

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एक नशा कर बैठे हम
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  एक नशा कर बैठे हैं हम
और न कुछ कर पाएँगे।
जिन्हें रक्त से सींच रहे हैं
उन्हें छोड़ क्या गाएँगे।

प्यास नहीं आकुल अधरों पर
हमने बंशी धारी है।
बने-ठने इस मेले में तो
बाकी सभी उधरी है।
तुम तो मरघट पर रुक लोगे,
हम अनंत तक जाएँगे।

हमको बाँध सका कोई तो
बाँधा केवल छंदों ने।
नकली हस्ताक्षर ही माना
कुछ आँखों के अंधों ने।
विषधर तो विष ही उगलेंगे
अमृत हम छलकाएँगे।

हम ऐसे सौदागर हैं जो
छोड़ तराजू चलते हैं।
पर्वत से हैं टकरा जाते
पर आँसू से गलते हैं।
यों गल-गल कर मेघों से हम
गीतों में ढल जाएँगे।

--निर्मला जोशी

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

दोहों में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
२९ मार्च २०१० के अंक में

इस माह के कवि-
रमेशचंद्र आरसी

अंजुमन में-
नीरज गोस्वामी

छंदमुक्त में-
विजयशंकर चतुर्वेदी

दिशांतर में-
सुदर्शन प्रियदर्शिनी

पुनर्पाठ में-
प्रदीप मिश्रा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
   
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