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दूर तक धुँधलका है,
अंधकार छलका है,
कैसे हर सपना सहलाएँ?
फैले सन्नाटे में,
अलग-अलग हैं खेमे,
कहाँ-कहाँ दर्द गुनगुनाएँ?रोप रहे नागफनी
विष जीवी मिल-जुल कर,
संवेदन हो गया निरर्थक,
बहती विपरीत हवा
फेंक रही सिर्फ जहर,
विकृत हैं ह्रदय और मस्तक,
हार गए मंत्र-सिद्ध
मंडराते रहे गिद्ध,
आसमान कैसे गर्जाएँ?
कहाँ-कहाँ दर्द गुनगुनाएँ?
बढ़ते जाते तनाव
फँसकर आवर्तों में,
सभी ओर पनप गया जंगल,
अग्नि शिखर पर बैठे
जीना है शर्तों में,
अर्थहीन लगता है हर पल
चलते हैं चक्रवात,
डाल-डाल पात-पात
उलझी गति कैसे सुलझाएँ?
कहाँ-कहाँ दर्द गुनगुनाएँ?
--भगीरथ बडोले |