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११. १. २०१०

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शहर में अम्मा

  बीच शहर में रह कर अम्मा
गुमसुम रहती है

खड़ी चीन जैसी दीवारें
नील गगन छूती मीनारें
दिखें न सूरज चाँद सितारे
घर आँगन सब बंद किवारे
बिछुरी गाँव डगर से अम्मा
पल-पल घुलती है

नंगा नाच देख टीवी में
नोंक-झोंक शौहर-बीवी में
नाती-पोते मुँह लटकाए
सन्नाटा हरदम सन्नाए
देख-देख सब घर में अम्मा
गुप-चुप रहती है

सारी दुनिया लगती बदली
चेहरा सबका दिखता नकली
धरम-करम सब रखे ताक में
सब के सब पैसा फ़िराक में
सह ना पाती ये सब अम्मा
सच-सच कहती है

--जयजयराम आनंद

इस सप्ताह

गीतों में-

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    शरद रचनाओं के साथ- गाँव में अलाव

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पिछले सप्ताह
४ जनवरी २०१० के अंक में

गीतों में-
नचिकेता

छंदमुक्त में-
तनहा अजमेरी

बाल गीतों में-
कृष्ण शलभ

दोहों में-
शशि पाधा

पुनर्पाठ में-
ऋषिपाल धीमान

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
   
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