|
जितने फन
उतनी फुफकारें,
इस संकट में किसे पुकारें?
सभी
यहाँ हैं जहर उगलते,
बात-बात में रोज़ उबलते,
जितने सर उतनी तलवारें,
इस संकट में किसे पुकारें?
कौन
यहाँ है खेवनहारा,
कौन लगाए हमें किनारा,
टूट गई सबकी पतवारें,
इस संकट में किसे पुकारें?
सभी
खून में सने हुए हैं,
बिना वजह ही तने हुए हैं,
गूँज रही सबकी ललकारें,
इस संकट में किसे पुकारें?
- मधुसूदन साहा |