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अभिव्यक्ति  

७. १२. २००९

अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्रामगौरवग्रंथ दोहे पुराने अंकसंकलनहाइकु
अभिव्यक्ति हास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतरनवगीत की पाठशाला

बेतहाशा भागते सब

  हवा में
उड़ती चिरायंध
नाक में रुमाल ठूँसे
बेतहाशा-
भागते सब
कौन रुककर बात पूँछे,

पारदर्शी वस्त्र में हैं
सजे-सँवरे लोग नंगे,
मूँदकर
मरजाद को जो ढो रहे हैं वही कंधे,
भीड़ में
कुछ नहीं दिखता
कौन सच हैं कौन झूठे

जी रहे रिश्ते
जहाँ तुमसे हमारा वास्ता है,
शेष अपनी मंज़िलें हैं
और अपना रास्ता है,
एक पल
खुलती हथेली
दूसरे पल तने घूँसे।

- कौशलेन्द्र

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

नई हवा में-

हास्य व्यंग्य में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
३० नवंबर २००९ के अंक में

गीतों में-
रमेश गौतम

अंजुमन में-
धनंजय कुमार

छंदमुक्त में-
सुधा ओम ढींगरा

छोटी कविताओं में-
मदन गोपाल लढा

पुनर्पाठ में-
निवेदिता जोशी

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
 
३०,००० से अधिक कविताओं का संकलन
     
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