अभिलाष शुक्ल |
|
आधुनिक मुकरियाँ
(व्यंग्य) निर्वाचन में
वह है आता,
आश्वासन से कष्ट मिटाता।
राजनीति का वह अभिनेता
क्यों सखि साजन, ना वह नेता
बिना पढ़े रचना लौटाए,
अपने को सर्वज्ञ बताए।
नव लेखन में जो है बाधक,
क्यों सखि साजन, ना वह संपादक।
ऑफ़िस में जो रोब जमाए,
सुविधा-शुल्क जिसे अति भाए।
बैठ कार पर मारे चक्कर।
क्यों सखि साजन, ना अध्यापक।
पढ़ना-लिखना जिसे न भाए,
कक्षा छोड़ सिनेमा जाए।
लिए चले विद्या की अर्थी,
क्यों सखि साजन, ना विद्यार्थी।
७ दिसंबर २००९ |