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२७. ७. २००९

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मँझधार में रहे

 

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सूखे में
सूखे हम, बाढ़ में बहे,
जहाँ रहे हरदम मँझधार में रहे!

धूप सदा
कच्ची ही कान की रही
खेत-बैल-
फसलें परधान की रहीं
अपने तो कर्ज़ों के
क्रूर अजदहे!

चाहे हो
जनवरी चाहे हो जून
एक जून
रोटियाँ, एक जून सून
बाज़ों की घातों से
रात-दिन सहे!

मुट्ठी में
काग़ज़ से मुड़े-तुड़े हैं
टूट-टूट,
रोज़ कई बार जुड़े हैं
घुन खाई देहों में
लिए कहकहे!

--हरीश निगम

इस सप्ताह

गीतों में-
डॉ. हरीश निगम

अंजुमन में-
राजेन्द्र पासवान घायल

छंद मुक्त में-
अमरजीत सिंह

हाइकु में-
रामनिवास मानस

पुनर्पाठ में-
दिविक रमेश

पिछले सप्ताह
२० जुलाई २००९ के अंक में

गीतों में-
अभिज्ञात

अंजुमन में-
विनोद तिवारी

छंद मुक्त में-
विद्या सागर जोशी

दोहों में-
अशोक गीते

पुनर्पाठ में-
देवेन्द्र रिणवा

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी
 
३०,००० से अधिक कविताओं का संकलन
   
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