मन मेरा
ये चाहे छू लूँ
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मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।फिर भी मुझको इच्छा-बल से
बढ़ना है- चढ़ना है।
रस्ता चाहे कैसा भी हो
मुझको तय करना है।
दृढ़-विश्वास जो मेरा साथी
क्यों न करूँ प्रयास।
मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।
जीवन के इस इक-इक पल को
मुझको यहाँ भुनाना।
सुख-चंदा-सा, दुख-सूरज-सा
सबको गले लगाना।
दिल में आशा किरण जगी फिर
तम की क्या औकात।
मन मेरा ये चाहे छू लूँ
बढ़कर मैं आकाश।
राह है लम्बी जीवन छोटा
समय न मेरे पास।
-- दुर्गेश गुप्त ''राज'' |
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इस सप्ताह
गीतो में-
दिशांतर में-
छंद मुक्त में-
दोहों में-
पुनर्पाठ में-
पिछले सप्ताह
९ फरवरी वसंत विशेषांक में
गीतों में-
यतीन्द्र राही,
कुसुम सिन्हा,
कमल किशोर भावुक,
डॉ. महेन्द्र भटनागर, डॉ. रमा
द्विवेदी,
डॉ. सरस्वती
माथुर,
नित्यगोपाल
कटारे,
मानोशी चैटर्जी, ममता किरण,
राजेंद्र शुक्ल राज,
श्यामल सुमन,
शशि पाधा
छंद-मुक्त में-
जीतेन्द्र चौहान,
तेजराम शर्मा,
निर्मल गुप्ता,
मधुलता अरोड़ा,
रजनी भार्गव,
राकेश
खंडेलवाल,
लेफ्टिनेंट
कर्नल गोपाल वर्मा,
विनय जोशी,
शार्दूला,
डॉ. सरस्वती माथुर
छंदों में-
ओमप्रकाश तिवारी,
कमल किशोर
भावुक
दोहों में-
यतीन्द्र राही,
रामनारायण त्रिपाठी पर्यटक
मुक्तक में-
कमल किशोर
भावुक
ग़ज़लों में-
कुसुम सिन्हा,
महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश
संकलन में-
वसंती हवा
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