भोर की
पहली किरन
आ तुझे सादर नमन।यह संदेशा है कि,
मैं, अपने हिये की खोल दूँ
है चिरंतन और शाश्वत
जय उसी की बोल दूँ।
झर चले अरविंद,
अपनों से बिछुड़ने की प्रथा है।
दरस को
तरसे नयन
आ तुझे सादर नमन।
तितलियाँ हैं संचरित,
बह रहा सुरभित पवन
फिर भला आतंक क्यों
हो मेरा दीपित गगन
मंगला, तेरे ही संबल से बनी
जीवन-कथा है
परस मैं
तुझ को सुमन
आ तुझे सादर नमन।
- क्षेत्रपाल शर्मा |