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अभिव्यक्ति  २५. ८. २००८

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शिरीष धरप की कलाकृति

नदी

 

जिसने चाहा किया उसी ने
पार नदी को

पूजा उत्सव
सभी व्यवस्था पहले जैसी
दान दक्षिणा
संत भक्त
गणिकाएँ विदुषी

युगों युगों से
रहे निरंतर तार नदी को
जिसने चाहा किया उसी ने
पार नदी को

सभी कुशल तैराक
नहीं होते नाहक ही
विजयी होने की
उनकी इच्छाएँ
सतही

कभी न भाया
यह दैहिक व्यापार नदी को
जिसने चाहा किया उसी ने
पार नदी को

सहमति वाली नाव
असहमति वाले पुल से
बालू के विस्तार
और मटमैले जल से

समय दे रहा है
अजीब आकार नदी को
जिसने चाहा किया उसी ने
पार नदी को

- गणेश गंभीर

इस सप्ताह

गीतों में-

अंजुमन में-

पुनर्पाठ में-

छंदमुक्त में-

क्षणिकाओं में-

पिछले सप्ताह
१८ अगस्त २००८ के अंक में

गीतों में-
अवध बिहारी श्रीवास्तव

अंजुमन में-
अमर ज्योति 'नदीम' 

पुनर्पाठ में-
गिरिजाकुमार माथुर

छंदमुक्त में-
कृष्ण कुमार यादव

दिशांतर में-
ऑस्ट्रेलिया से प्रेम माथुर

 

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