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24. 6. 2007  

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धूप मजूरिन

सूरज उगते ही आ जाती
नित्य काम पर धूप मजूरिन

पूरे दिन खटती रहती है
तनिक विराम नहीं करती है
संझबेला होने पर थक कर
घर को जाती धूप मजूरिन

हर छिन कड़ी नज़र के नीचे
बिन बोले ओंठों को भींचे
भू की ओर किए मुँह रहती
लगी काम में धूप मजूरिन

नहा पसीने से जाती है
तेज ताप में तप जाती है
पांव झुलस जाते भूघर में
पर श्रम करती धूप मजूरिन

भूख प्यास पूछता न स्वामी
बंधुआ जीवन कठिन गुलामी
ऊपर से मौसम की मारें
सबकुछ झेले धूप मजूरिन

उर में आग सुलगती रहती
उसके तनमन दहती रहती
जेठ-क्वार में भड़क विप्लवी
ज्वाला बनती धूप मजूरिन

--मलखान सिंह सिसौदिया

 

इस अंक में

गीतों में-

गौरव ग्राम में-

अंजुमन में- कविताओं में- नई हवा में-

पिछले अंकों से

इस माह के कवि में- नचिकेता
गीतों में- सुधांशु उपाध्याय
कविताओं में- महेन्द्र भटनागर, 'शरद आलोक' और एकांत श्रीवास्तव
नई हवा में- गौतम जोशी, अरविंद चौहान और तुषार जोशी
अंजुमन में- राजेन्द्र पासवान घायल
दोहों में- प्रदीप दूबे
क्षणिकाओं में- कुंतल कुमार जैन
पाठकनामा में- किशोर सर्राफ़

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1–9–16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी