मलखान सिंह सिसौदिया
मलखान सिंह सिसोदिया हिंदी की
प्रगतिशील कविता के अग्रिम पंक्ति के कवि हैं। उनका लेखन काल
1941 से प्रारंभ हुआ और आज भी वे साहित्य समाज में सार्थक कवि
साधक समझे जाते हैं।
उनके अभी तक 6 कविता संग्रह
प्रकाशित हो चुके हैं-
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धूप मजूरिन सूरज उगते ही आ जाती
नित्य
काम पर धूप मजूरिन
पूरे दिन खटती रहती है
तनिक
विराम नहीं करती है
संझबेला होने पर थक कर
घर को जाती धूप मजूरिन
हर छिन कड़ी नज़र के नीचे
बिन बोले ओंठों को भींचे
भू की ओर किए मुँह रहती
लगी काम में धूप मजूरिन
नहा पसीने से जाती है
तेज
ताप में तप जाती है
पांव झुलस जाते भूघर में
पर श्रम करती धूप मजूरिन
भूख प्यास पूछता न स्वामी
बंधुआ जीवन कठिन गुलामी
ऊपर से मौसम की मारें
सबकुछ झेले धूप मजूरिन
उर में आग सुलगती रहती
उसके तनमन दहती रहती
जेठ-क्वार में भड़क विप्लवी
ज्वाला बनती धूप मजूरिन
24 जून 2007
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