11चाँद पूनम का
न जाने चाँद पूनम का,
ये क्या जादू चलाता है
कि पागल हो रही लहरें, समुंदर कसमसाता है
हमारी हर कहानी में, तुम्हारा नाम आता है
ये सबको कैसे समझाएँ कि तुमसे कैसा नाता है
ज़रा सी परवरिश भी
चाहिए, हर एक रिश्ते को
अगर सींचा नहीं जाए तो पौधा सूख जाता है
ये मेरे और ग़म के बीच में क़िस्सा है
बरसों से
मै उसको आज़माता हूँ, वो मुझको आज़माता है
जिसे चींटी से लेकर
चाँद सूरज सब सिखाया था
वही बेटा बड़ा होकर, सबक़ मुझको पढ़ाता है
नहीं है बेईमानी गर ये
बादल की तो फिर क्या है
मरुस्थल छोड़कर, जाने कहाँ पानी गिराता है
पता अनजान के किरदार का
भी पल में चलता है
कि लहजा गुफ्तगू का भेद सारे खोल जाता है
ख़ुदा का खेल ये अब तक नहीं समझे कि वो
हमको
बनाकर क्यों मिटाता है, मिटाकर क्यूँ बनाता है
वो बरसों बाद आकर कह गया फिर जल्दी आने
को
पता माँ-बाप को भी है, वो कितनी जल्दी आता है
--लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
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