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सब कुछ हो आनंदमय, नव जीवन, नव हर्ष।
शांति, सौख्य, उल्लास, ले आए नूतन वर्ष।।
पल-पल पुलकित प्राण हों, सांस-सांस आनंद।
कष्ट, क्लेश, कुत्सा कटें, जीवन हो सानंद।।
हम अतीत के बाज के, कांटे भीषण पंख।
जलें दीवाली के दिये, गूँजे मंगल शंख।।
काटें हिंसा का गला, कुत्सा रहे न अल्प।
नये वर्ष के वक्ष पर, लिखें यहीं संकल्प।।
शब्दों के घर पर चलें, अर्थों के व्यापार।
आएँ चलकर कर्म खुद, अब वाणी के द्वार।।
दानवता-दशशीश का, होगा निश्चित नाश।
मानवता को राम से, मिले यही विश्वास।।
नव साधन, नव चेतना, नव उर, नव उल्लास।
दिवा रैन नव, वर्ष नव, नव जीवन-विन्यास।।
हर घर नंदनवन बने, हर उर प्रभु का गेह।
हर हिंसा अब प्रेम को, सौंपे अपनी देह।।
स्वस्तिवचन नव वर्ष का, बने आरती मंत्र।
मिले विषम इस विश्व को, समतामूलक तंत्र।।
हर घर में हँसता मिले, शिशु का उजला हास्य।
विस्मित बंदूकें करें, सिर्फ़ गंध का लास्य।।
रिश्तों की मरुभूमि ले, उर्वरता - विन्यास।
प्रीतिलता उपजे, उगे, कल्पवृक्ष - विश्वास।।
-डा. राम सनेही लाल शर्मा 'यायावर'
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