| अनुभूति में नीरज 
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 शनिवार
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					शनिवार
 मैं सप्ताह में एक दिन होता था परेशान
 पूरा नहीं होता था उस दिन कोई अरमान
 दिन भर होते थे मुझ पर सहस्त्रों वार
 मेरे लिए अग्निपरीक्षा का दिन था शनिवार
 शनिवार को मैं फूँक-फूँक कर कदम बढ़ाता था
 लेकिन अनुकूल परिस्थितियों में भी
 अक्सर मात खा जाता था
 २१ जून सन सत्तानवे का वो दिन शनिवार था
 उस दिन मुझे अपने परीक्षाफल का इंतजार था
 मैंने एक पर्ची पर अपना अनुक्रमांक लिखा
 जल्दी जल्दी में ३२५७ के बजाय ३२८७ दिखा
 बाज़ार जाते ही मैंने अख़बार लिया
 व पूर्ण विश्वास के साथ अनुक्रमांक ढूँढना शुरू किया
 पिताश्री सोचते थे कि मेरा पुत्र अनमोल है
 मैंने पाया कि मेरा अनुक्रमांक गोल है
 बहुत प्रयास किए लेकिन अनुक्रमांक नहीं मिला
 मन में शुरू हुआ कुविचारों का सिलसिला
 मैंने अपने बचाव की कोई योजना नहीं बनाई
 और रिज़ल्ट वाली पूरी बात घर में सुनाई
 मैं पहली बार ऐसी खबर घर में सुना रहा था
 इसलिए घर का प्रत्येक सदस्य मुस्कुरा रहा था
 लेकिन जब हुआ मेरी बात का विश्वास
 तो मेरे बचने की न थी कोई आस
 पिताश्री अपनी तात्कालिक अभिव्यक्तियों को
 मुझ पर वारने लगे
 मेरे ही भीगे जूतों से मेरे केश सँवारने लगे
 बाद में वो रिज़ल्ट वाली पोल खुली
 लेकिन मुझे सरदर्द से छः दिन बाद राहत मिली
 अब दुखी हो चुकी थी मेरी आत्मा
 संयोग से अगले ही दिन मिले एक महात्मा
 मैंने उन्हें अपनी परिस्थिति बताई
 उन्होंने मेरे केस में दिलचस्पी जताई
 बोले तुम हनुमान जी की स्तुति करो
 उन्हीं के सामने इस केस की प्रस्तुति करो
 मैंने युद्ध स्तर पर प्रभु को ढूँढना शुरू किया
 व छठे दिन आखिर उन्हें ढूँढ ही लिया
 देखा तो प्रभु मुस्कुरा रहे थे
 अपने भक्तों को मेरे बारे में बता रहे थे
 
 मैंने सर रखकर प्रभु के चरण छुए
 मुझे नतमस्तक देख प्रभु प्रसन्न हुए
 प्रभु से यह मेरी पहली मुलाकात थी
 शनिवार वाली मुसीबत अब तक मेरे साथ थी
 मैं प्रभु के श्री चरणों में खो गया
 आज सही मायने में मेरा भाग्योदय हो गया
 
 जब मैंने प्रभु के भक्तों के बारे में जिज्ञासा जताई
 तो प्रभु ने मेरे हाथों में एक सूची थमाई
 मैं बोला भगवन बाकी सब तो सही है
 लेकिन इस सूची में मेरा नाम नहीं है
 
 प्रभु बोले नीरज तुम जीवन के उतार चढ़ाव
 व धूप छाँव हँसते-हँसते सहते हो
 इसलिए तुम इस सूची में नहीं
 हमारे हृदय में रहते हो
 
 मेरा मन जो पर्ची देखकर कुछ रूष्ट था
 अब पहले से कहीं अधिक संतुष्ट था
 प्रभु को प्रसन्न देख मैं बोला
 प्रभु मुझे राम लखन व सीता जी से मिलाइए
 अपनी हृदय चीरने वाली घटना का
 एक बार तो रीप्ले दिखाइए
 
 प्रभु ने रीप्ले दिखाया
 पर राम जी से मैं मिल न पाया
 प्रभु बोले नीरज माँ इंतज़ार कर रही होगी
 अब तुम जाओ
 राम जी से मिलने के लिए अपनी साधना को
 और बढ़ाओ
 
 लौटते समय मैंने प्रभु से उनका पता व
 मोबाइल नंबर लिया
 दर्शन पुनः दीजिएगा
 यह आश्वासन ले उन्हें प्रणाम किया
 लौटते समय मेरे मन में एक विचार था
 कि मेरी प्रभु से मुलाकात भी शनिवार था
 हे शनि आपने मुझे हनुमान जी से मिला दिया
 मेरे व्यर्थ से जीवन को आपने सफल बना दिया
 
 उसी दिन से कर रहा हूँ एक प्रयास
 किसी भी चीज़ पर अब न करूँगा अंधविश्वास
 पहले मुझको प्रभुमूरत में कंकड़ दिखलाई देते थे
 अब मुझको कण कण में भगवान दिखाई देते हैं।
 श्री राम दिखाई देते हैं
 हनुमान दिखाई देते हैं ।।
 
 २४ अप्रैल २००५
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