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					परीक्षाभवन
 परीक्षाभवन में आज फिर होने लगा आत्ममंथन मेरा
 काश कुछ पढ़ा होता,
 याद कुछ करा होता
 प्रश्नपत्र देखते ही मेरा सर चकरा गया
 पढ़ी थी अमोनिया, सोडियम क्लोराइड आ गया
 छात्रएकता संकल्प हमारा है
 आज तो बस नकल का सहारा है
 तभी गुरू जी बोले
 मैं किसी को नकल नहीं करने दूँगा
 गर्दन हिली तो कापी छीन लूँगा
 हाय कितने सख्त शिक्षक कमरे में पड़े हैं,
 आधे घण्टे से मेरे ही सर पर खड़े हैं
 तभी सोचा पानी पीने के लिए जाता हूँ
 वहीं इधर उधर से एक दो पर्ची ले आता हूँ
 मैंने पूछा पानी पीने जाऊँ?
 सर बोले ज्यादा प्यासे हो तो पानी वाले को यहीं बुलाऊँ
 मैं बोला रहने दीजिए इसकी जरूरत नहीं है
 मेरी प्यास अपने आप ही बुझ गई है
 कैसे दूँ मैं गुरू को झाँसा
 मेरा मन पर्ची का प्यासा
 मैंने भोलेपन से सर की ओर देखा
 और अपना ब्रह्मास्त्र उधर फेंका
 सर पिछले कुछ दिनों से
 मेरी तबियत कुछ खराब रही है
 इधर बहुत गर्मी लग रही है
 सर मेरे साथ थोड़ी रियायत कीजिए
 मुझे उस पंखे के नीचे बिठा दीजिए
 सर बोले उधर का पंखा तो और भी धीरे चल रहा है
 उधर बैठे लड़कों को देखो कितना पसीना निकल रहा है
 तुम इधर मेरी कुर्सी पर आओ
 शीघ्र आओ बेटा समय निकल रहा है
 भाग्य ने कुछ यूँ पासा पलटा
 मेरा ये पैंतरा भी पड़ गया उल्टा
 कुछ छात्र तो उत्तर लिख रहे थे
 लेकिन अधिकतर परेशान दिख रहे थे
 तभी एक छात्र बोला
 गुरूजी बिना नकल के परीक्षा क्या यह सही है
 आपकी सख्ती से बहुत परेशानी हो रही है
 परीक्षा का इस तरह मखौल न उड़ाइए
 जाइए थोड़ा पान वान खाकर आइए
 हमारे उतरे हुए चेहरे देख गुरूजी मंद मंद मुस्काने लगे
 अपनी जेब से पान की पुड़िया
 निकाल वहीं पान खाने लगे
 लगता है आज मैं
 अपने शाकाहारी व्रत को बचा नहीं पाऊँगा
 अपने जीवन का प्रथम अण्डा इसी प्रश्नपत्र में खाऊँगा
 मैं परीक्षाफल के बारे में सोचकर डरने लगा
 तैंतीस प्रतिशत अंकों के लिए
 तैंतीस करोड़ देवताओं की स्तुति करने लगा
 उम्मीद थी कि शायद शिवजी की तीसरी आँख खुल जाए
 उनकी कृपा से दो तीन प्रश्नों की ही पर्ची मिल जाए
 लेकिन शायद यह मेरे पिछले कुकर्मों का हिसाब है
 आज भाग्य भी कुछ ज्यादा ही खराब है
 अंततः मैं बोला अच्छा तो सर अब इजाजत दीजिए
 मेरी यह कोरी उत्तरपुस्तिका जमा कर लीजिए
 सर बोले बेटा धीरज धरो
 जो भी कर सकते हो करो
 मैं बोला अब तो मैं यह प्रार्थना ही कर सकता हूँ
 गुरू गोविन्द दोऊ खड़े गोविन्द के लागूँ पाँय
 ऐसे सख्ती वाले सर से गोविन्द हमें बचाँय।
 
 २४ अप्रैल २००५
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