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अनुभूति में रविशंकर मिश्र 'रवि' की रचनाएँ -

नई रचनाओं में-
कैसे पाए स्नेह
खिला न कोई फूल
देश रसोई
वही गाँव है
सन्दर्भों से कटकर

गीतों में-
ऊपर हम कैसे उठें
जैसे ही ठंड बढ़ी
दुख हैं पर
धीरे-धीरे गुन शऊर का
बिटिया के जन्म पर
मुस्कुराकर चाय का कप
सौ सौ कुंठाओं में
 

 

बिटिया के जन्म पर

अभी अभी अवतरित हुई जो
उस भोली मुस्कान का
सोच रहे हैं नाम रखें क्या
हम इस नन्हीं जान का

भोलेपन का
कोमलता का
सबका ही प्रतिबिम्ब दिखाये
शब्द कौन सा हो जो इसका
पूरा पूरा बोध कराये
घर में सब कर रहे प्रदर्शन
अपने हिन्दी ज्ञान का

दादा कहें कि
दादी रखें
दादी कहें कि दादा जी
कहें फुफा जी बुआ रखेंगी
बुआ बतायें पापा जी
सोच रहे पापा क्या होगा
मम्मी के अरमान का

वैसे सोचो तो
मानव का
नामों से क्या नाता है
वह होता है कौन क्या पता
जो भी यह तन पाता है
पर इस दुनिया में तो कोई
ज़रिया हो पहचान का

२१ जनवरी २०१३

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