| आ गया आतंक 
                  हाथ मेंबंदूक लेकर
 आ गया आतंक!
 काँपता बाज़ारथर्राते हैं चौराहे
 स्वप्न-पक्षी के
 परों को अब कोई बाँधे
 लो, खुले आकाश परगहरा गया आतंक!
 आज रिश्ते काँच कीदीवार से लड़ते
 देहरी पर नई कीलें
 ठोंककर हँसते
 सुर्ख आँखों पर उतरकरछा गया आतंक!
 सभ्यता विश्वास के घऱहो गई शैतान
 सत्य के नीचे खुली है
 झूठ की दूकान
 रक्त-सिंचित पाँव धरबौरा गया आतंक!
 ८ मार्च २०१० |