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अनुभूति में कुमार रवींद्र की रचनाएँ

नए गीत-
एक बच्चे ने छुआ
काश! पढ़ पाते
धुर बचपन की याद
बोल रहा घर

गीतों में
अपराधी देव हुए

इसी गली के आखिर में
और दिन भर...

खोज खोज हारे हम
गीत तुम्हारा

ज़रा सुनो तो
पीपल का पात हिला
बहुत पहले
मेघ सेज पर
वानप्रस्थी ये हवाएँ
शपथ तुम्हारी
संतूर बजा
सुनो सागर
हम नए हैं

हाँ सुकन्या

 

संतूर बजा

संतूर बजा
केसर-घाटी में दिन भर संतूर बजा

रहीं बहुत दिन इस घाटी में
साँसें ज़हरीली
और रहीं बरसों माँओं की
आँखें भी गीली

संतूर बजा शाहों के झगड़ों में
मरती रही प्रजा

सदियों रही गुलाबों की खुशबू
इस घाटी में
और सभी को गले लगाना था
परिपाटी में

संतूर बजा
इस कलजुग में इसी बात की मिली सज़ा

संतों पीरों की बानी के
वही हवाले हैं
सबने उनके अपने-अपने
अर्थ निकाले हैं

संतूर बजा
पुरखों ने था नेह राग इस पर सिरजा

1 मई 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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