अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

गीतों में-
आँकड़ों में ही बदलकर
एक मंचन, एक अभिनय, एक सच
कहाँ कहाँ पर जाकर खोजें
बोलता जो झूठ को
हम मिले हैं मित्रवत

छंदमुक्त में-
केवल होना
गुजारिश
चला जा रहा था
विज्ञापन

अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कहीं पर
कुछ घटना कुछ क्षण
कुलाँचे
जख्मों का अहसास नहीं
मैं थोड़ा मुस्कराना
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

हम समंदर

गीतों में-
उकेरो हवा में अक्षर
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
धूप आगे बढ़ गयी
पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

 

आँकड़ों में ही बदलकर

आँकड़ों में ही बदलकर रह गये हैं
हम जरा सी दूर
चलकर रह गये हैं

हो रहा था जब सहजता का परिक्षण
तब हमें अश्लीलता ने गालियाँ दीं
यह हमारा धैर्य ही था नहीं जिसने
आचरण की कभी भी दीवार फाँदीं
समय की निर्लज्जता भी
सह गये हैं

क्रोध की सारी टहनियों को झटककर
हम जड़ों को सींचने में ही लगे हैं
काटने को ही रहे उद्यत सदा वे
जिन्हें हम कहते रहे अपने सगे हैं
जो कहा वह उक्तियों में
कह गये हैं

एक वातावरण विकसित हो रहा है
जिस जगह निरपेक्ष साँसें संक्रमित हैं
उत्सवों के शोर में गुम हो गये जो
संतुलन के स्वर कहे जाते भ्रमित हैं
अंध निष्ठावान भी अब
बह गये हैं

योजनाएँ लाँघकर हमको गयीं जो
दूर जाकर दीखतीं जैसे चिढ़ातीं
क्रीत-दासों की तरह उद्घोषिकाएँ
किसी प्रायोजित सुबह का गीत गातीं
सब सुरक्षित दुर्ग अपने
ढह गये हैं 

१ सितंबर २०२२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter