| अनुभूति में
                  भारतेंदु  मिश्र 
                  की रचनाएँ- नए गीतों में-अंधा दर्पन
 गीत होंगे
 मौत का कुआँ
 रामधनी 
					की माई
 हमको सब 
					सहना है
 दोहों में-सरिता के कूल
 गीतों में-कितनी बार
 गयाप्रसाद
 बाजार घर में
 बाजीगर मौसम
 बाँसुरी की देह दरकी
 देखता हूँ इस शहर को
 नवगीत के अक्षर
 मदारी की लड़की
 रोज नया चेहरा
 वाल्मीकि व्याकुल 
है
 समय काटना है
 |  | गयाप्रसाद
                  
 गाँव में अकाल पडा तो
 शहर में आ गया था
 पेट पालना ही
 सीखता रहा गयाप्रसाद।
 
 खोमचा लगाया
 कभी पान बेचने लगा वो
 जिन्दगी का खेत
 सींचता रहा गयाप्रसाद।
 
 टीबी जो हुई तो
 रिक्शा खींचना मोहाल हुआ
 खून से ही
 गाडी खीचता रहा गयाप्रसाद।
 
 इंकलाब की
 अटूट आस्था संजोये हुए
 भीड में अकेले
 चीखता रहा गयाप्रसाद।
 ३ मई २०१० |