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अनुभूति में अश्विनी कुमार विष्णु की रचनाएँ

गीतों में-
चंदा मामा रहो न अब यों
चलना पथ पाना है

तटबन्धों-का टूटना
मन की पहरेदारी में

मेघ से कह दो

अंजुमन में-
टूटे-फूटे घर में
फ़ुर्सत मिले तो
बिना मौसम
शहर में

संकलन में-
नयनन में नंदलाल- प्रभुकुंज बिहारी
ममतामयी- जय अम्बिके
विजयपर्वी- आशाएँ फलने को विजयपर्व कहता चल
         पिंजरे का तोता
होली है- फागुन की पहली पगचाप

हरसिंगार- मन हरसिंगार

  मन-की पहरेदारी में

और भला क्या मिलता
मन-की पहरेदारी में

कुछ यादें अब तक शर्माई रहती हैं
फ़रियादें मुरझी कुम्हलाई रहती हैं
हैरत है अब भी इन भीगी आँखों में
उसी सावनी-की अँगड़ाई रहती है
और नया क्या मिलता
ग़म-की साझेदारी में

एक नींव पर मंज़िल ही मंज़िल धर दी
ग़लती तो हमने की हद पर हद कर दी
सब कुछ धूल मिलाने की घटना रच दी
जर्जर खम्भों ने भी मनमानी कर दी
और बुरा क्या मिलता
ऐसी कारगुज़ारी में

क्यूँ हम उलझे रहते हैं इतिहासों में
फ़र्क हुआ करते हैं युग-विश्वासों में
जीवन है प्रिय-साँसों में तन्मय होना
सुधा छलकती है प्रणयी संत्रासों में
और बता क्या मिलता
तन-की पीर-हज़ारी में !

२१ अक्तूबर २०१३

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