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  बुलंद है हौसला

बुलंद है हौसला
जीवंत जीने का
इस बुढ़ापे में।
दुर्लभ देह को
अब भी
सँभाले हैं
हड्डियाँ और माँसपेशियाँ।
न सही बलीन
अवलीन
भी नहीं हूँ
कि ढह जाऊँ
ढेर हो जाऊँ
न मैं रहूँ मैं
न पृथ्वी रहे मेरे लिए
न मैं रहूँ पृथ्वी के लिए।

१६ नवंबर २००९

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