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  बूढ़ा पेड़

हाड़-माँस का
मैं हूँ बूढ़ा पेड़
मैं हूँ अब भी
प्राणवंत जीवंत।
मेरी भाषा की शाखाएँ
अब भी
रुचिकर रचनाओं के रूप में
कविताएँ देती रहती हैं
और मौसमी
गंध बाँटती रहती हैं।
पूर्ण प्रहर्षित-
पूर्ण प्रफुल्लित
मैं जीता हूँ एक-एक क्षण
क्षुब्ध नहीं होता हूँ मैं अब भी।

१६ नवंबर २००९

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