अनुभूति में
कल्पना रामानी
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
कोमल फूलों जैसे रिश्ते
खोलो मन के द्वार
गीत मैं रचती रहूँगी
पसीने से जब जब
भू का तन प्यासा
कुंडलिया में-
नारी अब तो उड़ चली
अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
खुदा से खुशी की लहर
खुशबू से महकाओ मन
ज़रा सा मुस्कुराइये
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
बंजर जमीं पे बाग
मन पतंगों संग
यादें
वतन को जान हम जानें
गीतों में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
धूप सखी
बेटी तुम
भ्रमण पथ
ये सीढ़ियाँ
दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु
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कोमल फूलों जैसे रिश्ते
खुशबू देते कोमल फूलों जैसे रिश्ते
ना जाने क्यों आज हो गए काँटे रिश्ते
पलकों पर पलते थे, रहते थे जो हिय में
ठोकर खा अब वही पड़े पैताने रिश्ते
सहलाते थे दर्द दिलों का मरहम लाकर
अब महरूम हुए हाथों से गहरे रिश्ते
खिल जाते थे नैन चार होते ही जो कल
नैन मूँद बन जाते अब, अनजाने रिश्ते
बूँद-बूँद से बरसों में जो हुए समंदर
बाँध पलों में तोड़ बने बंजारे रिश्ते
हरे भरे रहते थे भर पतझड़ में भी जो
अब सावन में भी दिखते हैं सूखे रिश्ते
तकरारों में पूर्व बनी माँ, पश्चिम बाबा
सुपर सपूतों ने कुछ ऐसे बाँटे रिश्ते
नादानी थी या शायद धन-लोभ 'कल्पना'
गाँव-गली से बिछड़ गए जो प्यारे रिश्ते
२० जुलाई २०१५
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