अनुभूति में
कल्पना रामानी
की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
कोमल फूलों जैसे रिश्ते
खोलो मन के द्वार
गीत मैं रचती रहूँगी
पसीने से जब जब
भू का तन प्यासा
कुंडलिया में-
नारी अब तो उड़ चली
अंजुमन में-
कभी तो दिन वो आएगा
कल जंगलों का मातम
खुदा से खुशी की लहर
खुशबू से महकाओ मन
ज़रा सा मुस्कुराइये
जिसे पुरखों ने सौंपा था
देश को दाँव पर
बंजर जमीं पे बाग
मन पतंगों संग
यादें
वतन को जान हम जानें
गीतों में-
अनजन्मी बेटी
ऋतु बसंत आई
काले दिन
गुलमोहर की छाँव
चलो नवगीत गाएँ
जंगल चीखा चली कुल्हाड़ी
नारी जहाँ सताई जाए
धूप सखी
बेटी तुम
भ्रमण पथ
ये सीढ़ियाँ
दोहों में-
इस अनजाने शहर में
शीत ऋतु
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गीत मैं रचती रहूँगी
गीत मैं रचती रहूँगी, मीत, यदि तुम पास हो तो
मैं गजल कहती रहूँगी, गर सुरों में साथ दो तो
मैं नदी होकर भी प्यासी, आदि से हूँ आज दिन तक
रुख तुम्हारी ओर कर लूँ, तुम जलधि बनकर बहो तो
सच कहे जो आइना वो, आज तक देखा न मैंने
मैं सजन सजती रहूँगी, तुम अगर दर्पण बनो तो
इस जनम में तुमको पाया, धन्य है यह नारी-जीवन
फिर जनम लेती रहूँगी, हर जनम में तुम मिलो तो
नष्ट हो तन, तो ये मन, भटकेगा भव की वाटिका में
बन कली खिलती रहूँगी, तुम भ्रमर बन आ सको तो
प्यार, वादे और कसमें, इंतिहा अब हो चुकी है
साथ जीवन भर रहूँगी, इक घरौंदा तुम बुनो तो
खो भी जाऊँ 'कल्पना', तो ढूँढना इन वादियों में
प्रतिध्वनित होती रहूँगी, तुम अगर आवाज़ दो तो
२० जुलाई २०१५
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