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अनुभूति में चंद्रसेन विराट की रचनाएँ-

अंजुमन में-
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चाँदी का जूता
तुमको क्या देखा

मुक्तक में-
नाश को एक कहर

संकलन में-
मेरा भारत- ये देश हमारा
         वंदन मेरे देश

  तुमको क्या देखा

तुमको क्या देखा लगा, देखा जैसे चित्र
मैली आँखें धुल गईं, मन हो गया पवित्र

कुछ दूरी कुछ निकटता कुछ रारें कुछ प्यार
यह तुमको स्वीकार तो मुझको भी स्वीकार

रग रग में है राग तो रोम रोम रस कूप
जीवन को दैविक करे, दैनिक रूप अनूप

तुम भी चुप हो चुप उधर, और इधर हम मौन
इस चुप्पी की बर्फ़ को तोड़े आखिर कौन

बहुत देर तक रूठकर यों माना मनमीत
जैसे लंबे मौन पर मुखरित कोई गीत

यौवन में ऐसे बढ़े रत्ती रत्ती रूप
दुपहर में जैसे चढ़े सीढ़ी सीढ़ी धूप

रुपवान अत्यंत तुम, उतने ही गुणवंत
तन से तो श्रीमंत हो मन से भी श्रीमंत

जब तक यौवन है समझ, गौरी तेरा रूप
बीतेगा मध्याह्न तो उतर जायगी धूप

औचक आए सामने लिया दृष्टि भर देख
बिना भेंट परिचय खिंची अमिट हृदय पर रेख

रूप तुम्हारा देखकर जागा पूजा भाव
आप झुकीं पलकें प्रणत भूल प्रणय का चाव

२९ जून २००९

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