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अनुभूति में चंद्रसेन विराट की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब हथेली
अक्षरों की अर्चना

गजल हो गई
छंद की अवधारणा
मुक्तिकाएँ लिखें

दोहों में-
चाँदी का जूता
तुमको क्या देखा

मुक्तक में-
नाश को एक कहर

संकलन में-
मेरा भारत- ये देश हमारा
         वंदन मेरे देश

  चाँदी का जूता

पहुँचे पूरे जोश से, ज्यों आँधी तूफान
चाँदी का जूता पड़ा, तो सिल गई ज़ुबान

चुनने में देखा नहीं, तुमने पात्र, अपात्र
उनको प्राध्यापन दिया, जो कि स्वयं थे छात्र

खास स्थान पर खास को, मिला नहीं पद भार
सिफारिशों ने कर दिया, सब कुछ बंटाढार

पक्षपात बादल करे, वितरण में व्याघात
मरुथल सूखा रख करे, सागर पर बरसात

इन आँखों के सिंधु में, मन के बहुत समीप
जो अनदेखे रह गये, हैं कुछ ऐसे द्वीप

माना ज्यादा हैं बुरे, अच्छे कम किरदार
उन अच्छों की वजह से, अच्छा है संसार

बनी लिफाफा जीविका, मंच, प्राण की वायु
वहीं वहीं गाते फिरे, और काट ली आयु

मृत्यु-पत्र में क्या लिखूँ, मैं क्या करूँ प्रदान
ले देकर कुछ पुस्तकें, पुरस्कार, सम्मान

बस्ती के हित में बना, था पहले बाज़ार
अभी बस्ती को खा रहा, उसका अति विस्तार

दोनों पक्षों का नहीं, सध पाता है हेतु
आपस में संवाद का, टूट गया है सेतु

कवि तो कवि है प्राकृतिक, रचनाकार प्रधान
कोई आवश्यक नहीं, कवि भी हो विद्वान

गलत वकालत मत करो, दो मत झूठे तर्क
झूठ, झूठ है, सत्य को, नहीं पड़ेगा फ़र्क

अवसर दोगे दुष्ट को, क्यों न करेगा छेड़
खा जाएगा भेड़िया, बने रहे यदि भेड़

मिलता है व्यक्तित्व को, वैसा रुपाकार
जैसा होता व्यक्ति का, निज आचार-विचार

धनबल उस पर बाहुबल, तंत्र हुआ लाचार
दोनों बल के बल लिया, जनबल का आधार

धरने, अनशन, रैलियाँ, ये हड़तालें, बंद
प्रजातंत्र का देश में, है इकबाल बुलंद

कोयल, मैना, बुलबुलें, सारे सुर से मूक
'पॉप' सिखाता है उन्हें, देखो एक उलूक

२९ जून २००९

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