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अनुभूति में शकुंतला बहादुर की रचनाएँ-

दिशांतर में-
अपने बन जाते हैं
आकांक्षा
मुक्ति
सागर तीरे

छंदमुक्त में-
उधेड़बुन
कैलीफोर्निया में हिमपात
दूरियाँ
समय

 

सागर-तीरे

सागर की गहराई
कोई नाप न पाया
मानव-मन की करुणा को
इसने भरमाया

जल ही जल सब ओर
जलधि का था लहराया
प्यासा मन फिर भी
रह रह कर है क्यों अकुलाया

खारे आँसू कभी किसी को
क्या भाते हैं
मन की पीड़ा सदा बहाने
ही आते हैं

आँखों की साँपों के मोती,
सचमुच हैं अनमोल
इन्हें बिखरने मत देना
अन्तर्मन देंगे खोल

१ सितंबर २०२२

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