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अनुभूति में शकुंतला बहादुर की रचनाएँ-

दिशांतर में-
अपने बन जाते हैं
आकांक्षा
मुक्ति
सागर तीरे

छंदमुक्त में-
उधेड़बुन
कैलीफोर्निया में हिमपात
दूरियाँ
समय

 

अपने बन जाते हैं

भारत से दूर
अपनों से दूर
सुदूर विदेश में-
दूर के संबंध फिर से जुड़ जाते हैं।

दूरियों को दूर कर,
सब निकट आ जाते हैं,
अपने बन जाते हैं।
अनजाने में ही, अनजाने भी,
अपने बन जाते हैं।

अपरिचित भी तो,
परिचित ही नहीं, आत्मीय हो जाते हैं।
और.....

मन की उदासी में -
हर्ष भर जाते हैं ।।

१ सितंबर २०२२

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