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रोज़ एक कहानी

 

रोज़ एक कहानी

कहानी तो रोज़ 
काकी सुनाती थी
माँ रात में
न जाने कहाँ जाती थी
सुबह
कोई भूखा नही रहता था
आज भी
रात होने से डरती हूँ
काश!
इस डर के अंधेरों की सुबह हो

५ मई २००८

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