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अनुभूति में पराशर गौड़ की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
चाह
बहस
बिगुल बज उठा
सज़ा
सैनिक का आग्रह

हास्य व्यंग्य में-
अपनी सुना गया
गोष्ठी
पराशर गौड़ की सत्रह हँसिकाएँ
मुझे छोड़
शादी का इश्तेहार

संकलन में-
नया साल- नूतन वर्ष

मुझे छोड़

कवि के घर गया चोर
करने चोरी
मेरे ख्याल से उस चोर की
मति गई थी मारी
तभी तो गया वो
कवि के घर करने चोरी

रात के सन्नाटे में
कमरे के एक कोने में
अगली कड़ी की तलाश में
कविराज
माथा रगड रहे थे
शब्द छन्द और कविता के बीच
बुरी तरह से फँसे हुए थे

चोर
उठा कर मौके का फायदा
घुसा
यूँ घुसा कि घुसता ही चला गया
पैसों की तलाश में
कमरा कमरा छान
किताबों के अंबार में फँसता ही चला गया

तभी अचानक
किताबें गिरी आहट हुई
सुनकर कवि दौड़े
बती जलाई चोर से भेंट हुई

कवि बोले………
इतनी रात गये
आप मेरे यहाँ क्या कर रहे है
सब साफ–साफ बता कर
मुझे कृतार्थ कीजिए
आप है कौन
साथ–साथ अपना परिचय भी दीजिए

घुड़क कर चोर बोला
अबे तेरे यहाँ
न तो सन्दूकची है न सन्दूक
न सेफ न बस्ता है
ये बता तू
पैसा कहाँ रखता है

कवि बोले
तो आप चोर है
कड़कर चोर बोला
अबे…"है नही”… हूँ
पैसा कहाँ है बता
नहीं तो एक घूँसा दूँ

कवि बोला
मेरे ही घर में
मुझको धमका रहे हो
ये तो सरासर ज्यादती है
तुम्हें नही मालूम
सरस्वती और लक्ष्मी में कितना बैर है

सुन कर ये सब
होकर उदास
जब चोर जाने लगा
कवि बोला… कहाँ जा रहे हो
पुलिस बुलाऊँ………
या मेरी कविता सुनते हो ।

सुन कर ये सब
चोर की पाँच की मट्टी खिसक गई
कहाँ फँस गया
अरे मै तो चोरी करने आया था
यहाँ तो कवि गले पड़ गया ।

कवि मुस्कुरा के बोला
तुम चोर जैसे घरों को ढूँढते है
हम कवि है मियाँ
सुनने वालो की तलाश में
तो हम भी रहते है

चोर बैठा–बैठा
उसकी कविता सुनता रहा
देकर बार–बार अपने को ही गाली
अपने को ही कोस रहा था

कवि था कि रुकने का
नाम ही न लेता
एक के बाद एक
कविता उसे सुनाए जाता

आखिर हिम्मत जुटाकर चोर बोला
कविराज… थोड़ा क्षमा कीजिए
सुबह होने वाली है
अब तो जाने दीजिए

बोला कवि…अभी कैसे
अभी तो आधी हुई
अभी आधी बाकी है

चोर गिडगिड़ाकर बोला
बस बस रहम करो
ज्यादा हो जायेगा
आधी सुनकर तो मेरा ये हाल है
बाकी सुनकर तो
मेरा बाप भी मर जायेगा ।

चोर बोला
हे कविवर लगा कर तेरे पाँव हाथ
रहम कर मेरे नाथ
विनती के स्वर में बोला वो
दोनो हाथ जोड
ये पकड़ दो सौ मेरे बाप
अब तो मुझे छोड़

२४ मार्च २००४

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