अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में हरिहर झा की रचनाएँ—

नयी रचनाओं में-
मेरे पिता
तेरे बोल
इस शहर में भी
अविनाशी
विसंगति

गीतों में-
न इतना शरमाओ
पतझड़

प्रिये तुम्हारी याद

छंदमुक्त में-
चुप हू
न जाने क्यों
रावण और राम

संकलन में—
ज्योतिपर्व– अंतर्ज्योति
शुभ दीपावली- धरा पर गगन
ममतामयी- माँ की याद
शरद महोत्सव हाइकु में- बर्फ के लड्डू
नया साल- साल मुबारक
वर्षा मंगल- रिमझिम यह बरसात

 

इस शहर में भी

सुना था -
गाँव में
नीम के नीचे का भूत
डरावनी आवाज़ करता है
तब देर रात गये
जंगल को जाती पगडंडी
अचानक

खड़ी हो जाती थी
एक लम्बी सी पुतली की तरह
और समा जाती थी
नुक्कड़ वाली गली पर
सूने खंडहर में।

पर इस शहर में भी तो
इंसान!
दारू की बोतल में
बन्द हो कर
भूतहा नाच नाचते हैं
अट्टहास करते हैं
जब चढ़ता है उन पर
हाँसिल करने का बुखार
मिर्गी की तरह
तो जूता सुँघाने वाला
कोई नहीं मिलता!
रिश्तेदार तो हैं आसपास
पर प्रेतात्माओं की तरह
अमूर्त रूप में!
जिनकी हड्डियों का
यहाँ प्रवेश वर्जित है
तान्त्रिक की शिष्ट-विधि
के अनुसरण पर।

लोग अपने ही खून की प्यास लिये
थक कर चूर
लहू-माँस को निबटाते हुये
अपनी लाश पर सुस्ताते हुये
एक कोने में
काच के गोले के निकट
कंकाल-हड्डी पर अंगूठा दबाते हैं
तब प्रगट होती हैं छायाएं…
इधर-उधर
लम्बे डग भरती
भूतयान की चूड़ैल
फुँफकारती
मन्त्र मारने को इधर-उधर!
पर्दे पर मोगरे की मासूम कली
कुचली जाती देख कर भी
तंत्रियों के भीतर उलझी
उदास डायन खुश नहीं!
जानती है कि सब कुछ अभिनय!
तो भटकती हैं
एक श्मशान से दूसरे श्मशान।

१ मई २०२२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter