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अनुभूति में आशीष मिश्रा की रचनाएँ

दिशांतर में-
धीरे-धीरे जब आँगन में
पुरानी है मूरत
बना प्रवासी एक देश मे
ब्रिटेन का पतझर
ये देश ये शहर
 

 

ये देश ये शहर

सपनों की सतह से ऊपर उड़ाता मुझे
ये देश ये शहर अब अपना बनाता मुझे

समय तो लगा कुछ गम भी सहे
कुछ आँसू बहे कुछ अंदर रहे
बहे सब बहाने, बनाने स्वयं को
बहुत कुछ दिया है नयेपन ने हमको
कह कर नया दिन जगाता मुझे

कभी तो कठिन-सा पहाड़ा दिया
कभी दीप भर कर सितारा दिया
रोशन हो मन तो अलग रात है
नये देश ने सब सहारा दिया
पतझड़ ये झड़ कर बताता मुझे

जीवन नया पर अलग तो नहीं
उड़ जा परिंदे फलक भी यहीं
काँटे भी होंगे और काटे भी होंगे
नये बाग में नव महक भी यहीं
और स्वागत में राहें दिखाता मुझे

१ दिसंबर २०२२

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