अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में आशीष मिश्रा की रचनाएँ

दिशांतर में-
धीरे-धीरे जब आँगन में
पुरानी है मूरत
बना प्रवासी एक देश मे
ब्रिटेन का पतझर
ये देश ये शहर
 

 

धीरे-धीरे जब आँगन में

धीरे-धीरे जब आँगन में
यहाँ फैलता सूनापन।
गीले-गीले नयनों से
हृदय नापता अपनापन।।

अपनापन रातों का सच्चा
दिन का है दर्पण कच्चा
सच में दंभ यथा भरने से
मेरा खाली बर्तन अच्छा

अच्छाई की बनी चाशनी
में पिघलाता मैलापन।
गीले-गीले नयनों से
हृदय नापता अपनापन।।

सागर की लहरों में भी
गिरती देखी ठंडी ओस
मिलकर खारी हो जाती हैं
कैसे बोलूँ किसका दोष

मीठापन देकर सरिता ने
पाया केवल खारापन।
गीले गीले नयनों से
हृदय नापता अपनापन।।

उन फूलों का मुरझाना
गिरकर थोड़ा मुस्काना
और पंखुड़ी को फैलाकर
हौले-हौले समझाना

सपना बोलूँ या अवरोध
कौन कराए इसका शोध
शायद मौन कराएगा
रुक-रुक कर इसका भी बोध

ऐसे सारे संतापों का
होगा मधु से उद्यापन।
गीले-गीले नयनों से
हृदय नापता अपनापन

१ दिसंबर २०२२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter