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अनुभूति में विनीता शुक्ला की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
उसको तो जाना ही था
जिजीविषा
जीवन का गणित
मुट्ठी भर रेत

 

उसको तो जाना ही था

उसको तो
जाना ही था

माँ और बापू की छाती
पर थी भार
सावन की नदिया-सा
यौवन का ज्वार
लम्पट भँवरों की परछाईं से दूर
फूल किसी 'देव' पर चढ़ाना ही था
उसको तो जाना ही था

दूल्हों की हाट में
लग ना सकी बोली
जात में बिरादरी मे
बात जो चली
फुसफुसाहटें पड़ोस तक सुनायी दीं
किसी भाँति पार तो लगाना ही था
उसको तो जाना ही था

फिर इक दिन मेहँदी
हाथों में सज गयी
घर के अंगना में
खुशियाँ मचल गयीं
ममता का आँचल होता गया परे
दुनिया की रीत को निभाना ही था
उसको तो जाना ही था

नए नए कुनबे का
अजब रंग ढँग
पैसों में तौले जो
जन्मों का संग
यंत्रणा के अंतहीन पथ पर चलकर
डोली से अर्थी तक आना ही था!
उसको तो जाना ही था

१ मई २०२४

 

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