अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विनीता शुक्ला की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
उसको तो जाना ही था
जिजीविषा
जीवन का गणित
मुट्ठी भर रेत

 

जिजीविषा

युगों युगों से है
सृजन की प्रेरणा समष्टि में
कोई तो है जो भर रहा
सुहाने रंग सृष्टि में
कि जिसकी दिव्य तूलिका से
सज गई दिशा दिशा
जो धड़कनों में गा रहा
जिजीविषा... जिजीविषा!

अपने अपने मरुथलों में
चल रहे हैं हम सभी
अलग अलग इबारतों में
ढल रहे हैं हम सभी
मरीचिका के रूप भिन्न
किन्तु एक सी तृषा
जो व्यग्र हो पुकारती-
जिजीविषा... जिजीविषा!

१ मई २०२४

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter